Roorkee: राजपूत समाज द्वारा मनाई गई अनटोल्ड बैटल ऑफ़ इंडिया दिवेर संग्राम की 442 वी जयंती

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रुड़की l अनटोल्ड बैटल ऑफ़ इंडिया दिवेर संग्राम की 442 वी जयंती राजपुत महासभा रुड़की के सदस्य मनोज राणा के कार्यालय डिफेंस कॉलोनी में राजपूत समाज द्वारा मनाई गई।

इस अवसर पर सभी राजपुत महासभा रुड़की के सभी सदस्य एकत्रित हुए। तथा युवाओं को दिवेर युद्ध, जो 16 सितंबर 1582 में विजयदशमी के दिन महाराणा प्रताप द्वारा लड़ा गया और जीता गया, के बारे में विस्तार पूर्वक बताया गया। अध्यक्ष श्री नरेश चौहान बताया कि अकबर को मुगल सेना द्वारा सबसे बड़ा समर्पण(36000 मुगल सैनिक) इस युद्ध में प्रताप द्वारा कराया गया और यह युद्ध इतिहास की किताबों से पोंछ दिया गया। उन्होंने बताया कि भारतीय युवाओं को सिर्फ प्रताप द्वारा लड़ा गया 1576 ईस्वी में हल्दीघाटी का युद्ध ही पढ़ाया जाता है ,जबकि दिवेर का युद्ध के बारे में इतिहास की किताबों में या तो है ही नहीं और अगर है भी तो एक दो लाइन ही कहीं दिखाई देती हैं।

डा अमरदीप सिंह ने बताया कि राणा प्रताप को राणा से महाराणा बनाने वाला हल्दीघाटी का युद्ध नहीं बल्कि 1576 के बाद का वह संघर्ष है जो उनके धैर्य, साहस, दृढ़ निश्चय और बलिदान को हमारे सामने प्रस्तुत करता है। उनके द्वारा हल्दीघाटी के युद्ध के बाद कि वह शपत की ने तो महल में जाऊंगा , न पलंग पर सोऊंगा ,ना चांदी के बर्तन में खाऊंगा, इसी दिवेर के युद्ध के बाद पूरी हुई थी। जिसमें उन्होंने चित्तौड़ के दुर्ग में उसके आसपास का थोड़ा क्षेत्र छोड़कर मेवाड़ का सारा क्षेत्र अकबर से वापस ले लिया था।

श्री संजय राणा ने बताया कि मुगल इतिहास में मुगल सेना का सबसे बड़ा आत्मसमर्पण जो की प्रताप की 10000 की सेना के सामने 36000 मुगल सैनिकों द्वारा किया गया था, नई पीढ़ी को पढ़ाया ही नहीं गया ।जो की एक विकृत मानसिकता का परिचायक है।श्री मनोज राणा ने कहा कि सरकार द्वारा इस गोरवांवित इतिहास को पाठ्यक्रम में भी सम्मिलित करना चाहिए ताकि भारतीय युवा पीढ़ी गर्व से सिर ऊंचा कर सके।

इस संबंध में अधिवक्ता नरेश पुंडीर ने बताया कि यह क्षेत्र अकबर के लिए इतना महत्वपूर्ण था कि 1576 में हल्दीघाटी के युद्ध में हारने के बाद उसने मानसिंह को दरबार में घुसने तक नहीं दिया ।वह अपने सेनापतियो पर इतना क्रोधित था कि बाकी सभी मानसबदारों से मनसब वापस ले लिए और इसके बाद 1577, 1578, 1579, 1580 प्रत्येक साल अपने छठे हुए सेनापतियों को शक्तिशाली मुगल सैनिक को जो की 40 से 50000 की संख्या में होते थे , हर साल भेजता रहा।

ठाकुर विक्रांत पुंडीर ने बताया की यही वह युद्ध था जिसमें प्रताप ने अकबर के सबसे क्रूर सेनापति बहलोल खान के तलवार के एक ही बार से दो टुकड़े कर दिए थे। इस युद्ध में महाराणा प्रताप की एक तरफ जीत के साथ-साथ वह शपथ भी पूरी हुई थी, जो उन्होंने हल्दीघाटी के युद्ध के बाद ली थी।

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