Haridwar: मुगलकाल के शब्द ‘पेशवाई’ और ‘शाही स्नान’ को बदलने की तैयारी, अखाड़ा परिषद की योजना

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Haridwar: कुंभ के दौरान चार प्रमुख स्थानों पर आयोजित स्नान पर्वों की मुख्य आकर्षण अखाड़ों और संतों के स्नान होते हैं। जब अखाड़े कुंभ नगरों के बाहर डेरा डालते हैं, कब उनकी संप्रदायों में प्रवेश होता है, कब ध्वजा फहराई जाती है और कब कुंभ के शाही स्नान होते हैं, ये सारी तिथियाँ करोड़ों लोगों के मेला के केंद्र बिंदु रहती हैं।

अखाड़ों में प्रवेश को पहले ‘प्रवेशवाई’ कहा जाता था, जो मुगलकाल में ‘पेशवाई’ बन गया। इसी तरह, कुंभ स्नान के दिन, जब राजा और महाराज भी अखाड़ों के साथ हाथी, घोड़े, ऊंट और रथ की शोभायात्रा के साथ आते थे, तो शाही व्यवस्थाओं के कारण इसे ‘शाही स्नान’ कहा जाता था। अब, प्रयाग कुंभ शुरू होने से पहले, अखाड़ा परिषद ‘पेशवाई’ और ‘शाही’ शब्दों को मुगलकाल के बतौर बदलने की योजना बना रही है।

नए नामों की योजना

अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष श्रीमहंत रविंद्र पुरी ने बताया कि इस निर्णय को प्रयागराज के कुंभ स्नान से पहले लिया जाएगा। यह कार्य अखाड़ा परिषद की बैठक बुलाकर किया जाएगा। नए नामों की घोषणा भाषाविदों की सलाह के बाद की जाएगी। रविंद्र पुरी ने कहा कि संस्कृत या हिंदी भाषा से संबंधित नामों का उपयोग किया जाएगा।

उर्दू या फ़ारसी के अन्य शब्दों को भी अखाड़ों से हटा दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि कुंभ प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में आयोजित होता है। इन चार राज्यों की सरकारों को भी लिखित सूचना दी जाएगी, ताकि नए नामों को कुंभ स्नान के सरकारी व्यवस्थाओं में शामिल किया जा सके।

इतिहासिक संदर्भ

कुंभ मेला की सभी गतिविधियाँ सात संन्यासियों, तीन बैरागियों, दो उदासियों और एक निर्मल के गौरवपूर्ण इतिहास से जुड़ी हैं। आद्या जगद्गुरु शंकराचार्य महाराज ने देश के लाखों नागा, बैरागी, उदासी और निर्मल को अखाड़ों में संगठित किया था। अखाड़ों को हिंदू राजाओं से राजकीय समर्थन प्राप्त हुआ था। उस काल में कई उर्दू और फ़ारसी शब्द जैसे ‘जखीरा’, ‘मालो असबाब’, ‘ख़ज़ाना’ आदि अखाड़ों में प्रवेश कर गए थे।

अब अखाड़े स्वयं इन शब्दों को बदलने का निर्णय ले रहे हैं। इसके लिए जूना, अग्नि, आह्वान, निरंजनी, महानिर्वाणी, आनंद, अटल, निर्मोही अनी, निर्वानी अनी, दिगंबर अनी, बड़ा अखाड़ा उदासी, नया अखाड़ा उदासी और निर्मल अखाड़ों के महंतों की बैठक प्रयागराज में जल्द बुलायी जाएगी।

निष्कर्ष

अखाड़ा परिषद की इस पहल से यह स्पष्ट होता है कि भारतीय संस्कृति और धर्म को उसकी मूल पहचान पर वापस लाने की कोशिश की जा रही है। मुगलकाल के शब्दों को हटाकर संस्कृत और हिंदी शब्दों का उपयोग करना, सांस्कृतिक पुनरुद्धार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह परिवर्तन न केवल धार्मिक महत्त्व को बनाए रखने में सहायक होगा बल्कि भारतीय संस्कृति के प्रति सम्मान और गर्व को भी प्रकट करेगा।

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