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Kedarnath: मंदाकिनी नदी का तीखा ढलान और तेज बहाव केदारनाथ क्षेत्र में मिट्टी के कटाव का सबसे बड़ा कारण

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Kedarnath: केदारनाथ क्षेत्र में मिट्टी का कटाव तेजी से बढ़ रहा है, जिसके लिए चोराबारी ग्लेशियर से निकलने वाली मंदाकिनी नदी की तेज धारा और ढाल सबसे बड़ी वजह बन रही है। इससे भूस्खलन की घटनाएं भी बढ़ रही हैं। थोड़ी सी बारिश में ही मंदाकिनी नदी का जलस्तर बढ़ जाता है और उसकी रफ्तार तेज हो जाती है।

Kedarnath: मंदाकिनी नदी का तीखा ढलान और तेज बहाव केदारनाथ क्षेत्र में मिट्टी के कटाव का सबसे बड़ा कारण

नदी अपने उद्गम से गौरीकुंड तक लगभग 20 किलोमीटर के क्षेत्र में एक संकरी घाटी से होकर गुजरती है, जहां थोड़ी सी बारिश में ही जलस्तर बढ़ जाता है। इससे मिट्टी का कटाव बढ़ने के कारण हर साल भूस्खलन की घटनाएं भी बढ़ रही हैं। इसके बावजूद यहां ठोस सुरक्षा उपाय नहीं किए जा रहे हैं।

ढाल और संकरी घाटी के कारण थोड़ी सी बारिश में ही नदी का जलस्तर बढ़ जाता है

गढ़वाल विश्वविद्यालय के भूगोल विभाग के पूर्व प्रमुख प्रोफेसर यशपाल सुंदरियाल ने बताया कि नदी के उद्गम से लेकर केदारनाथ तक इसकी लंबाई कम है और ढाल भी एक समान है। लेकिन केदारनाथ से गौरीकुंड तक मंदाकिनी नदी एक संकरी घाटी में तेज ढाल के साथ बहती है, जिससे इसकी रफ्तार तेज हो जाती है। हिमालयी क्षेत्र से निकलने वाली नदियों में मंदाकिनी अपने शुरुआती रास्ते में सबसे तेज ढाल पर बह रही है। मंदाकिनी नदी लगभग 94 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद रुद्रप्रयाग में अलकनंदा नदी से मिल जाती है।

उन्होंने बताया कि नदी चोराबारी ग्लेशियर से गौरीकुंड तक अपने शुरुआती 20 किलोमीटर के क्षेत्र में एक संकरी V आकार की घाटी में लगभग 18 मीटर की ऊर्ध्वाधर ढाल के साथ बह रही है, जिससे इसकी रफ्तार बढ़ जाती है। ढाल और संकरी घाटी के कारण थोड़ी सी बारिश में ही नदी का जलस्तर बढ़ जाता है। गर्मी से लेकर बारिश के मौसम तक नदी केदारनाथ से गौरीकुंड तक खतरे के निशान पर बहती है, जिससे पूरे क्षेत्र में बड़े पैमाने पर मिट्टी का कटाव भी हो रहा है।

क्लाउड बर्स्ट… मंदाकिनी का जलस्तर बढ़ाया

सुंदरियाल के अनुसार, जून 2013 की आपदा के बाद से मंदाकिनी नदी का बहाव और गति बढ़ी है, जिससे क्षेत्र में मिट्टी का कटाव भी बढ़ रहा है। नदी के तल से लगातार मिट्टी कटने के कारण केदारनाथ से गरूड़चट्टी और बेस कैंप से रामबाड़ा क्षेत्र तक भूस्खलन हो रहा है। 31 जुलाई की देर शाम बादल फटने से मंदाकिनी नदी का जलस्तर बढ़ गया और बहाव बढ़ गया।

इससे कई जगहों पर भूमि कटाव हुआ है और फुटपाथ कई जगहों पर क्षतिग्रस्त हो गया है। नदी के उफान का असर गौरीकुंड से सोनप्रयाग तक भी महसूस किया गया है, जिससे राजमार्ग सहित नदी के किनारों पर भारी कटाव हुआ है। आपदा के बाद मंदाकिनी के बहाव को नियंत्रित करने के लिए सर्वे कराया गया था और केदारनाथ से रुद्रप्रयाग तक बाढ़ क्षेत्र चिह्नित किए गए थे, जहां सिंचाई विभाग द्वारा सुरक्षा कार्य किए जाने थे, लेकिन 11 साल बाद भी यह नहीं हो सका।

कम ऊंचाई पर होने के कारण क्लाउड बर्स्ट होते हैं

केदारनाथ एक V आकार की घाटी में स्थित है, जहां साल भर अधिकतर समय बारिश होती रहती है। बादलों में अधिक नमी होने के कारण वे कम ऊंचाई पर होते हैं, जिससे अक्सर बारिश होती है। कई बार एक जगह के बादल अधिक नमी के कारण अपेक्षित ऊंचाई तक नहीं पहुंच पाते हैं, जिससे एक जगह पर भारी बारिश शुरू हो जाती है, जिसे क्लाउड बर्स्ट कहते हैं।

हिमालयी क्षेत्र से निकलने वाली नदियों में मंदाकिनी की गति और ढाल सबसे अधिक है, जिससे भूस्खलन और धंसाव हो रहा है। साथ ही संकरी जगह पर बहने के कारण नदी का जलस्तर थोड़ी सी बारिश में ही खतरे के निशान से ऊपर पहुंच जाता है। जरूरी है कि केदारनाथ क्षेत्र में नदी के दोनों ओर चरणबद्ध तरीके से सुरक्षा कार्य किए जाएं ताकि धाम की रक्षा हो सके।

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