
Kargil Vijay Diwas 2024: उत्तराखंड को नायकों की भूमि यूं ही नहीं कहा जाता। इस राज्य का सैन्य इतिहास वीरता और साहस की अनगिनत कहानियों से भरा हुआ है। यहां के लोक गीतों में वर्णित बहादुर योद्धाओं की गाथाएं राज्य की सीमाओं से परे फैल गई हैं और देश-विदेश में प्रसिद्ध हैं।
कारगिल युद्ध की वीरता की गाथा भी इस बहादुर भूमि के बिना अधूरी है। इस युद्ध में राज्य के 75 सैनिकों ने देश की रक्षा के लिए अपनी जान की आहुति दी। कोई ऐसा वीरता का पुरस्कार नहीं है, जो इस राज्य के बहादुर सैनिकों ने नहीं प्राप्त किया हो। जहां एक ओर उनकी याद में आंखें नम हो जाती हैं, वहीं दूसरी ओर गर्व से छाती फुल जाती है।
देवभूमि के वीर सदा अग्रिम पंक्ति में
देवभूमि के बहादुर बेटे हमेशा देश की सुरक्षा और सम्मान के लिए अग्रिम पंक्ति में रहे हैं। आज भी इन युवाओं में सेना में शामिल होने का जुनून बरकरार है। यही कारण है कि IMA से पास होने वाले हर 12वें अधिकारी का संबंध उत्तराखंड से है। भारतीय सेना का हर पांचवां सैनिक भी इसी बहादुर भूमि का जन्मा है।
जब भी देश में कोई आपदा आई, तो यहां के योद्धाओं ने अपनी जिम्मेदारी से पीछे नहीं हटे। स्वतंत्रता के बाद विभिन्न युद्धों और अभियानों में उत्तराखंड के 1685 सैनिकों ने देश की रक्षा के लिए अपनी जान दी। 1999 के कारगिल युद्ध में भारतीय सेना ने पड़ोसी देश की सेना को हराया और विजय प्राप्त की।
कारगिल योद्धाओं की वीरता को समर्पित
कारगिल योद्धाओं की वीरता को सम्मानित करने और शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए हर साल 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है। भारतीय सेना (वायु सेना सहित) के 526 सैनिकों ने अत्यंत दुर्गम घाटियों और पहाड़ियों में देश की प्रतिष्ठा और सम्मान के लिए अपनी जान दी। इनमें से 75 बहादुर सैनिक अकेले उत्तराखंड से थे। कारगिल युद्ध में राज्य से सबसे अधिक सैनिकों ने अपने प्राणों की बलि दी। यह एक छोटे राज्य के लिए एक बड़ी उपलब्धि है।
गढ़वाल राइफल्स के 47 सैनिकों ने दी जान
पहाड़ आज भी इस बलिदान की भावना को नहीं भूलते। जब एक साथ नौ शहीदों की शवयात्रा गढ़वाल रेजिमेंटल सेंटर लांसडाउन के परेड ग्राउंड पर उतारी गई, तो पूरा पर्वत अपने प्रियजनों को याद करते हुए रो पड़ा। कारगिल ऑपरेशन में गढ़वाल राइफल्स के 47 सैनिकों ने अपने प्राणों की आहुति दी, जिनमें से 41 बहादुर सैनिक उत्तराखंड से थे।
वहीं, कुमाऊं रेजिमेंट के 16 बहादुर सैनिकों ने भी अपनी जान दी। इस ऑपरेशन में अग्रिम मोर्चे पर खड़े योद्धाओं ने हरसंभव प्रयास किया। कारगिल, द्रास, माशकोह, बाटलिक जैसी दुर्गम घाटियों में दुश्मन के साथ जूझते हुए सैनिकों की बहादुरी के प्रतीक के रूप में युद्ध में वीरता के पदक दिए गए हैं।