
रुड़की l मौहल्लो में बढ़ते कुत्तों की तादाद आम जनमानस के लिए गंभीर समस्या का कारण बन रही हैl दु:खद स्थिति यह है कि कुत्ते यदि सड़कों पर भारी यातायात के बीच आ जाए तो उनके लिए भी उनकी संख्या असमय मौत का कारण बन रही हैl
सामाजिक संगठन और सामान्य नागरिकों द्वारा लगातार चिंता प्रकट किए जाने के बावजूद भी व्यवस्था अभी तक इस और ध्यान देने पर बाध्य नहीं हुई हैl ट्रिपल इंजन की सरकार में न तो स्थानीय नगर निकाय इस ओर कोई ध्यान दे रहे हैं, ना ही राज्य सरकार और ना ही केंद्रीय सरकार इस दिशा में कोई दिशा निर्देश जारी कर रही हैl
गौरतलब है कि कुत्तों की संख्या एकाएक बहुत बढ़ गई है l मौहल्लो में, गलियों में कुत्तों के झुंड के झुंड आतंक मचाते आम देखे जा सकते हैंl उनके भीतरी संघर्ष के कारण जहां सड़कों पर मार्ग दुर्घटनाएं बढ़ गई है वही यह किसी व्यक्ति को अकेले देखकर उसपर सामूहिक आक्रमण करने के मामलों को भी अंजाम दे रहे हैं l तमाम आबादियों से यह खबरें रोज आ रही है कि कुत्तों ने आमुख स्थान पर किसी बुजुर्ग या महिला या किसी बच्चे पर आक्रमण कर दिया और जब तक कोई मदद पहुंचे जब तक कुत्तों ने उसे फाड़ कर रख दिया l
ऐसी खबरें रोज समाचार पत्रों में प्रकाशित हो रही है, लेकिन व्यवस्था के किसी अंग की समझ में यह नहीं आ रहा है कि इस समस्या के समाधान के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिएl जहां तक रुड़की का सवाल है यहां पर नगर निगम की ओर से एक एनिमल बर्थ कंट्रोल इकाई की स्थापना की जा रही है जो की फिलहाल पद्धति पर है लेकिन इसका उपयोग कब तक संभव हो पाएगा यह अभी निश्चित नहीं है दूसरी ओर समस्या लगातार विकराल रूप लेती जा रही है l
*क्यों बढ़ रही है कुत्तों की संख्या*
कुत्तों का प्रजनन एक स्वाभाविक बात है ऐसा पहले भी होता था लेकिन पहले उनकी आबादी को नियंत्रित रखने के लिए व्यवस्था काम करती थीl जानकार लोगों के मुताबिक पहले नगर निकाय आवारा कुत्तों की संख्या को सीमित रखने के लिए उन्हें जहर देकर मार दिया करते थे ऐसा इसलिए भी किया जाता था क्योंकि कुत्तों के भीतर रेबीज होती है जिससे उसकी मानसिक संतुलन खराब हो जाता है और वह व्यक्ति पर हमला करता हैl
उसके हमले के शिकार को बचाना आज भी चिकित्सा विज्ञान के लिए चुनौती है लेकिन इस व्यवस्था पर 1999 में बनी अटल बिहारी वाजपई सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया थाl सरकार की पर्यावरण मंत्री श्रीमती मेनका गांधी ने इस प्रकार कुत्तों का वध किए जाने पर रोक लगा दी थी लेकिन वैकल्पिक व्यवस्था के तौर पर कुछ नहीं दिया थाl
यही कारण है कि तभी से सड़को, गलियों, मोहल्ले में कुत्तों की संख्या बढ़ती दिखाई दे रही है अब जाकर तो स्थिति इतनी नाजुक हो गई है ऐसा कोई मोहल्ला नहीं जहां दर्जनों दर्जनों की संख्या में कुत्ते सड़कों पर घूमते या उधम मचाते नहीं देखे जा सकते, यही कई बार दुर्घटनाओं का कारण बन रहे हैं और कई बार लोगों पर हमले कर रहे हैं l
*रेबीज को लेकर जागरूक है सरकार*
कुत्तों की लगातार बढ़ती संख्या के बीच इस बात के लिए व्यवस्था की प्रशंसा करनी होगी कि वह रेबीज विरोधी इंजेक्शन की उपलब्धता बरकरार रखे हुए हैंl पहले कभी एंटी रैबीज इंजेक्शन केवल सरकारी अस्पतालों में ही उपलब्ध होते थे यह व्यवस्था अभी भी है, साथ ही बाजारों में भी अब एंटी रैबीज इंजेक्शन उपलब्ध होते हैं लेकिन वह बहुत महंगे होते हैं l अहमियत इस बात की है कि जब चौतरफा कुत्तों का आतंक व्याप्त है तब रेबीज अफेक्टेड कुत्तों की संख्या बहुत अधिक नहीं है और यू रेबीज के शिकार लोगों की तादाद बेहद सीमित है l
*एनिमल बर्थ कंट्रोल यूनिट में क्या होगा…..*
पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले कुत्तों के अस्तित्व को बचाए रखने और उनकी संख्या को सीमित रखने की जो वैकल्पिक व्यवस्था बड़े शहरों में अपनाई जा रही है, वह उनकी नसबंदी किए जाने वाली है l स्वाभाविक रूप से कुत्तों की संख्या सीमित रखने के अलावा इसका कोई विकल्प नहीं है कि उनकी नसबंदी की जाएl महानगरों में यह व्यवस्था पहले से लागू है और अब रुड़की नगर निगम भी एनिमल बर्थ कंट्रोल यूनिट में यही व्यवस्था लागू करने जा रहा है l