Uttarakhand news: उत्तराखंड में बुग्यालों का एटलस होगा तैयार, स्वास्थ्य संबंधी भी मिलेगी जानकारी
Uttarakhand news: उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्र में स्थित बुग्याल, जो आपदा दृष्टिकोण से संवेदनशील माने जाते हैं, अब संकट के दौर से गुजर रहे हैं। ये बुग्याल भूस्खलन और मृदा अपरदन जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं, और सरकार अब इनकी स्थिति को गंभीरता से लेने लगी है। इसके मद्देनजर, वन विभाग अब उत्तराखंड स्पेस एप्लीकेशन सेंटर के सहयोग से बुग्यालों का एटलस तैयार कर रहा है, जिसमें इनकी पूरी जानकारी और इनके स्वास्थ्य के बारे में भी डेटा उपलब्ध होगा। इस एटलस को एक साल के अंदर तैयार किया जाएगा, और इसके आधार पर बुग्यालों के उपचार के लिए कदम उठाए जाएंगे।
बुग्याल क्या हैं?
बुग्याल वे हरे-भरे घास के मैदान होते हैं, जो समुद्र तल से लगभग तीन हजार पांच सौ मीटर की ऊंचाई पर स्थित होते हैं। इस ऊंचाई पर पेड़-पौधे अत्यधिक ठंड के कारण जीवित नहीं रह पाते, इसे ‘ट्री लाइन’ कहा जाता है। ट्री लाइन और बर्फीले इलाके के बीच जो क्षेत्र होता है, उसे बुग्याल कहा जाता है। बुग्यालों में 3300 मीटर से लेकर 3800 मीटर तक की ऊंचाई पर ‘फिच्ची’ घास और 3800 मीटर से ऊपर ‘बुग्गी’ घास पाई जाती है। इन क्षेत्रों में हल्की ढलान होती है और अधिकांशतः घास ही उगती है। नवंबर से मई-जून तक बुग्याल बर्फ से ढके रहते हैं, जबकि बाकी के मौसम में ये भेड़ों के चराने के लिए उपयोग होते हैं और यहां साहसिक पर्यटन के शौकिनों का जमावड़ा रहता है।
बुग्यालों में दरारें क्यों पड़ रही हैं?
बुग्यालों में दरारें पड़ने के कई कारण हैं, जिनमें मानव हस्तक्षेप, अनियंत्रित चराई, जलवायु परिवर्तन, अवांछित प्रजातियों का घुसपैठ और जड़ी-बूटियों का अति दोहन शामिल हैं। इसके अलावा, बादल फटने, अत्यधिक वर्षा और सर्दियों के सिकुड़ने जैसी घटनाओं ने बुग्यालों की स्थिति को और खराब कर दिया है। इन समस्याओं को लेकर सरकार अब सतर्क हो गई है।
एटलस से मिलेगी सटीक जानकारी
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने हाल ही में राज्य में बुग्यालों के संरक्षण के लिए 2 सितंबर को ‘बुग्याल दिवस’ मनाने की घोषणा की थी। इसके तहत, बुग्यालों के संरक्षण पर जोर दिया गया है। मुख्यमंत्री के निर्देशों के अनुसार, अब बुग्यालों का एटलस तैयार किया जाएगा। वन मंत्री सुबोध उनियाल ने भी विभागीय समीक्षा बैठक में अधिकारियों से एटलस तैयार करने की कार्ययोजना बनाने को कहा था। इसके बाद अब इस दिशा में कदम उठाए जा रहे हैं।
वन विभाग के प्रमुख मुख्य वन संरक्षक डॉ. धनंजय मोहन के अनुसार, उत्तराखंड स्पेस एप्लीकेशन सेंटर की मदद से राज्य में स्थित लगभग दो सौ बुग्यालों का एटलस तैयार किया जाएगा। इसमें बुग्यालों के क्षेत्रफल, वहां पाई जाने वाली जड़ी-बूटियों और वनस्पतियों, भूस्खलन और मृदा अपरदन की स्थिति आदि की जानकारी होगी। इस एटलस के आधार पर बुग्यालों के उपचार के उपाय किए जाएंगे।
डेयरा बुग्याल में जियो जूट तकनीक की सफलता
उत्तरकाशी जिले के डेयरा बुग्याल में 2019 से भूस्खलन और मृदा अपरदन की समस्या से निपटने के लिए उपाय शुरू किए गए थे। इस काम में जियो जूट तकनीक का उपयोग किया गया। इस तकनीक के तहत, पीरूल और बायोमास का उपयोग करके प्रभावित क्षेत्र में चेक डेम बनाए गए और जहां दरारें आईं, वहां जूट की चटाइयां बिछाई गईं।
वन विभाग के प्रमुख मुख्य वन संरक्षक डॉ. धनंजय मोहन के अनुसार, इस प्रयोग में सफलता मिली है। लगभग 40 प्रतिशत क्षेत्र में वनस्पतियां फिर से उग आई हैं और मृदा अपरदन भी रुक गया है। यह तकनीक भविष्य में अन्य बुग्यालों के संरक्षण के लिए भी अपनाई जाएगी।
उत्तराखंड के बुग्यालों का एटलस तैयार होने से इनकी स्थिति का सही आंकलन किया जा सकेगा और इनके संरक्षण के लिए ठोस कदम उठाए जा सकेंगे। जियो जूट तकनीक जैसे नए उपायों को अपनाने से बुग्यालों के संरक्षण में मदद मिलेगी और इनके नुकसान को कम किया जा सकेगा। बुग्यालों की रक्षा सिर्फ पर्यावरण के लिए नहीं, बल्कि राज्य के पर्यटन और स्थानीय अर्थव्यवस्था के लिए भी महत्वपूर्ण है।