Uttarakhand civic elections: राजभवन में अटका ओबीसी आरक्षण का अध्यादेश, सुप्रीम कोर्ट का आदेश विकल्प

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Uttarakhand civic elections: उत्तराखंड के नगरीय निकाय चुनावों के लिए ओबीसी आरक्षण को लेकर राज्य सरकार द्वारा भेजे गए दो अध्यादेशों में से एक राजभवन में अटका हुआ है। जहां एक ओर स्लम क्षेत्र के लिए आरक्षण का अध्यादेश मंजूर हो चुका है, वहीं ओबीसी आरक्षण में बदलाव से संबंधित अध्यादेश को राजभवन से मंजूरी नहीं मिल पाई है। इस मामले को लेकर चर्चा है कि राजभवन इसे चयन समिति की समस्या के कारण लंबित रखे हुए है। हालांकि, यदि यह अध्यादेश राजभवन से मंजूर नहीं होता है, तो राज्य सरकार के पास सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आधार पर चुनाव कराने का विकल्प मौजूद है। इस सप्ताह के भीतर स्थिति स्पष्ट होने की संभावना है।

अध्यादेश का लंबित होना और चुनाव प्रक्रिया में अड़चन

राज्य सरकार ने कैबिनेट से अनुमोदन प्राप्त करने के बाद ओबीसी आरक्षण को लेकर बदलावों वाले दो अध्यादेशों को राजभवन भेजा था। मंगलवार को स्लम क्षेत्र के लिए आरक्षण का अध्यादेश मंजूरी प्राप्त कर चुका था, लेकिन ओबीसी आरक्षण में बदलावों से संबंधित अध्यादेश राजभवन में अटका हुआ है। इस बात की संभावना जताई जा रही है कि राजभवन इसे चयन समिति की समस्या के कारण वापस कर सकता है, जिससे राज्य सरकार को चुनाव प्रक्रिया में और भी देरी हो सकती है।

इस स्थिति के बावजूद, सरकार के पास सुप्रीम कोर्ट के आदेश को आधार बनाकर चुनाव कराने का एक वैकल्पिक मार्ग है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार, राज्य सरकार को एक एकल सदस्यीय आयोग का गठन करना होगा, जो ओबीसी श्रेणी की जनसंख्या के आधार पर आरक्षण निर्धारित करेगा। आयोग की रिपोर्ट के आधार पर ओबीसी आरक्षण लागू किया जाएगा और इसके बाद चुनाव प्रक्रिया शुरू की जाएगी।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश और आयोग की भूमिका

सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 4, 2021 को महाराष्ट्र के एक मामले में और मई 10, 2022 को मध्य प्रदेश राज्य के मामले में अपना फैसला सुनाया था, जिसमें यह निर्देश दिया गया था कि राज्य सरकार को ओबीसी आरक्षण के लिए एक एकल सदस्यीय आयोग का गठन करना चाहिए। इस आयोग का कार्य होगा ओबीसी वर्ग की जनसंख्या के आधार पर आरक्षण की गणना करना और उस रिपोर्ट के आधार पर नगरीय निकायों में ओबीसी आरक्षण लागू करना।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक, यह रिपोर्ट आयोग द्वारा तैयार की जाएगी, और उसके बाद ही ओबीसी आरक्षण का मुद्दा हल किया जाएगा। इसके आधार पर ही चुनाव प्रक्रिया शुरू हो सकती है। इस प्रक्रिया के तहत राज्य सरकार को ओबीसी आरक्षण के लिए नियमों को मंजूरी देनी होगी, ताकि चुनाव की दिशा में आगे बढ़ा जा सके।

राज्य सरकार की चुनौती और चुनाव की तैयारी

राज्य सरकार के लिए यह स्थिति थोड़ी जटिल हो गई है, क्योंकि वह दोनों विकल्पों पर विचार कर रही है। जहां एक ओर वह राजभवन से अध्यादेश की मंजूरी की प्रतीक्षा कर रही है, वहीं दूसरी ओर उसे सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आधार पर चुनाव की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने की आवश्यकता है। चुनाव आयोग को चुनाव की तारीखों की घोषणा करने के लिए स्पष्टता चाहिए, ताकि चुनाव के लिए सभी तैयारियाँ पूरी की जा सकें।

राज्य सरकार और प्रशासन के सामने चुनौती यह है कि चुनाव की तैयारियाँ और ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर पर्याप्त समय में निर्णय लिया जाए। यदि राजभवन से अध्यादेश मंजूरी नहीं प्राप्त करता है, तो सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आधार पर ओबीसी आरक्षण को लागू करना ही एकमात्र विकल्प रहेगा।

ओबीसी आरक्षण का महत्व और समाज पर प्रभाव

ओबीसी आरक्षण की प्रक्रिया न केवल राजनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह राज्य के सामाजिक ढांचे में भी अहम भूमिका निभाती है। ओबीसी वर्ग के लिए आरक्षण सुनिश्चित करना समाज के कमजोर वर्गों को सशक्त बनाने के प्रयास का हिस्सा है। राज्य में ओबीसी वर्ग की बड़ी जनसंख्या है, और उनके लिए आरक्षण सुनिश्चित करने से उनके सामाजिक और आर्थिक उत्थान में मदद मिलेगी।

इसलिए, राज्य सरकार और चुनाव आयोग दोनों को ओबीसी आरक्षण के विषय में पारदर्शी तरीके से काम करना चाहिए, ताकि चुनावों में किसी प्रकार की अनियमितता न हो और चुनाव निष्पक्ष तरीके से संपन्न हो सकें।

राजनीति में ओबीसी आरक्षण की भूमिका

राजनीतिक दृष्टिकोण से भी ओबीसी आरक्षण एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। विभिन्न राजनीतिक दलों ने ओबीसी वर्ग के आरक्षण को लेकर अपनी-अपनी स्थिति स्पष्ट की है। ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर सरकार और विपक्ष के बीच लगातार बयानबाजी हो रही है। विपक्षी दलों का कहना है कि सरकार ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर चुनावी राजनीति कर रही है, जबकि सरकार का तर्क है कि वह संविधान और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन कर रही है।

इस प्रकार, ओबीसी आरक्षण का मुद्दा केवल प्रशासनिक या न्यायिक निर्णय तक सीमित नहीं है, बल्कि यह राज्य की राजनीति में भी एक अहम भूमिका निभाता है। आगामी चुनावों में ओबीसी आरक्षण का मुद्दा एक बड़ा चुनावी मुद्दा बन सकता है, और इस पर सभी दलों का ध्यान केंद्रित रहेगा।

राज्य सरकार और राजभवन के बीच ओबीसी आरक्षण को लेकर जारी खींचतान से चुनाव की प्रक्रिया प्रभावित हो रही है। हालांकि, राज्य सरकार के पास सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आधार पर चुनाव कराने का विकल्प है, लेकिन इसके लिए भी प्रशासन को समुचित तैयारियाँ करनी होंगी। इस बीच, यह स्पष्ट करना जरूरी है कि ओबीसी आरक्षण का मुद्दा न केवल चुनावी बल्कि सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है। सरकार को इस मुद्दे का समाधान जल्द से जल्द निकालकर चुनाव प्रक्रिया को निष्पक्ष और सटीक तरीके से आगे बढ़ाने की दिशा में कदम उठाने होंगे।

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