Exclusive: 31 साल बाद मिला बेटा या धोखेबाज़? Ghaziabad के राजू और Dehradun के मोनू की अनोखी कहानी

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Exclusive: उत्तराखंड पुलिस इन दिनों एक ऐसे चौंकाने वाले मामले की जांच कर रही है, जिसमें एक व्यक्ति ने पांच महीनों के अंदर दो अलग-अलग परिवारों से यह दावा किया कि वह उनका लापता बेटा है। इस व्यक्ति का नाम भले ही गाज़ियाबाद में राजू और देहरादून में मोनू हो, लेकिन उसकी कहानी हर किसी को चौंका रही है।

31 साल पहले हुए अपहरण का दावा

पुलिस के अनुसार, हाल ही में यह व्यक्ति गाज़ियाबाद के एक थाने पहुंचा और दावा किया कि उसका अपहरण 31 साल पहले हुआ था, जब वह सिर्फ आठ साल का था। उसने खुद को भीम सिंह बताया और कहा कि उसे राजस्थान में बंधुआ मजदूरी करने के लिए मजबूर किया गया था। इस बयान के आधार पर गाज़ियाबाद पुलिस ने उसे उसके “परिवार” से मिलवा दिया।

लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती। इससे कुछ महीने पहले, यह व्यक्ति देहरादून में भी ऐसा ही दावा कर चुका था।

देहरादून में मिला पहला परिवार

करीब पांच महीने पहले, यह व्यक्ति देहरादून के एक थाने पहुंचा और अपने माता-पिता को खोजने की गुहार लगाई। पुलिस ने उसकी तस्वीर मीडिया में साझा की, जिसके बाद एक महिला आशा शर्मा ने उसे पहचान लिया और कहा कि वह उनका खोया हुआ बेटा मोनू है। इसके बाद उसे आशा शर्मा और उनके पति कपिलदेव शर्मा के घर भेज दिया गया।

लेकिन कुछ ही समय बाद यह व्यक्ति अचानक “काम के लिए दिल्ली” जाने की बात कहकर गायब हो गया और अपने “परिवार” से दोबारा संपर्क नहीं किया।

गाज़ियाबाद में दूसरा परिवार

दिल्ली से जाने के बाद, यह व्यक्ति गाज़ियाबाद पहुंचा और वहां भी उसने पुलिस से अपने माता-पिता को खोजने की अपील की। इस बार उसने खुद को “राजू” बताया और दावा किया कि वह गाज़ियाबाद का रहने वाला है। यहां भी पुलिस ने उसे उसके “परिवार” से मिलवा दिया।

शक और विवादों के बादल

आशा शर्मा, जिन्होंने इस व्यक्ति को अपना बेटा मान लिया था, ने बताया कि वह उनके घर में हर दिन झगड़े करता था। वह अक्सर उनकी शादीशुदा बेटी के बच्चों को घर से बाहर निकालने की मांग करता था। कपिलदेव शर्मा ने बताया कि उन्हें शुरू से ही इस व्यक्ति पर शक था, लेकिन अपनी पत्नी के कहने पर उन्होंने उसे घर में रहने दिया।

कुछ दिनों बाद, वह “दिल्ली काम करने” के नाम पर घर से निकल गया और 8,000 रुपये भी उधार ले गया।

पुलिस की जांच और दावों में खामियां

गाज़ियाबाद पुलिस ने देहरादून पुलिस से संपर्क कर इस मामले की जांच शुरू की। पुलिस ने पाया कि व्यक्ति के बयान मेल नहीं खाते। वह यह बताने में नाकाम रहा कि उसे देहरादून और गाज़ियाबाद लाने वाला ट्रक ड्राइवर कौन था।

गाज़ियाबाद के डिप्टी पुलिस कमिश्नर निमिष पाटिल ने बताया, “इस व्यक्ति के बयानों में भारी अंतर पाया गया है, जिससे उसके दावों पर संदेह गहराता जा रहा है। फिर भी, हम इस मामले की गहराई से जांच कर रहे हैं।”

मानसिक स्थिति पर सवाल

देहरादून के एंटी-ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट इंस्पेक्टर प्रवीण पंत, जिन्होंने इस व्यक्ति को पहली बार उसके “परिवार” से मिलवाया था, ने बताया कि वह मानसिक रूप से अस्थिर प्रतीत हो रहा था। पुलिस इस व्यक्ति की मानसिक स्थिति की जांच कर रही है और जरूरत पड़ने पर गाज़ियाबाद और देहरादून दोनों जगहों पर जांच की जाएगी।

आशा और कपिलदेव ने रिश्ते को नकारा

आशा शर्मा और उनके पति ने अब इस व्यक्ति से किसी भी तरह का संबंध रखने से इनकार कर दिया है। कपिलदेव ने कहा, “हम नहीं चाहते कि वह व्यक्ति अब कभी हमारे घर लौटे।”

कहानी में बड़ा सवाल: कौन है असली परिवार?

यह मामला कई सवाल खड़े करता है। क्या यह व्यक्ति वास्तव में किसी का खोया हुआ बेटा है या फिर उसने धोखाधड़ी की है? पुलिस की जांच इस पर निर्भर करेगी कि वह अपनी कहानी को साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत पेश कर सकता है या नहीं।

क्या कहता है समाज?

यह घटना समाज में खोए हुए बच्चों और परिवारों के पुनर्मिलन से जुड़ी जटिलताओं को उजागर करती है। अक्सर भावनात्मक पहलू के चलते लोग बिना पूरी जांच के ही दावों को मान लेते हैं।

मोनू शर्मा उर्फ राजू की यह कहानी पुलिस और समाज के लिए एक सबक है। इस मामले में सत्य की परतें अभी खुलना बाकी हैं। पुलिस की गहन जांच से ही यह स्पष्ट होगा कि यह व्यक्ति सच कह रहा है या फिर यह महज एक धोखाधड़ी का मामला है।

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