Uttarakhand के स्कूलों में स्वच्छता संकट, खुले में शौच और टूटी-फूटी शौचालयों का मुद्दा
Uttarakhand: उत्तराखंड राज्य में सरकारी स्कूलों के छात्रों को बुनियादी सुविधाएं प्रदान करने के लिए शिक्षा विभाग कई कदम उठा रहा है। इसके बावजूद, स्कूलों में स्वच्छता की स्थिति में सुधार की दिशा में जरूरी प्रयासों की कमी महसूस हो रही है। कई स्कूलों में शौचालयों की हालत खस्ता है, और कई जगहों पर पानी की कमी के कारण शौचालयों का इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है। कुछ स्कूलों में तो शिक्षकों द्वारा शौचालयों के ताले तक बंद कर दिए जाते हैं, जिससे बच्चों को खुले में शौच जाने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
उत्तराखंड में शौचालयों का हाल
राज्य में कुल 11,380 प्राथमिक स्कूल हैं, जिनमें से 974 स्कूलों में लड़कियों को शौचालय की सुविधा नहीं मिल रही है, वहीं 798 स्कूलों में लड़कों को भी शौचालय की सुविधा उपलब्ध नहीं है। केंद्रीय सरकार ने इस वित्तीय वर्ष में समग्र शिक्षा के तहत उत्तराखंड को 1,205 करोड़ रुपये की मंजूरी दी है। इस राशि का कुछ हिस्सा स्कूलों में शौचालयों के निर्माण के लिए आवंटित किया गया है, लेकिन स्कूलों में शौचालयों की मरम्मत पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
इसका परिणाम यह है कि कई स्कूलों में शौचालयों का उपयोग नहीं हो पा रहा है। कई जगहों पर पानी की समस्या के कारण शौचालयों का उपयोग नहीं हो रहा है, जबकि कुछ स्कूलों में शिक्षक ही शौचालयों के ताले बंद कर देते हैं।
समग्र शिक्षा योजना और शौचालयों का निर्माण
केंद्रीय सरकार द्वारा जारी किए गए 1,205 करोड़ रुपये में से एक हिस्सा शौचालयों के निर्माण पर खर्च किया जा रहा है, लेकिन स्कूल स्तर पर लापरवाही के कारण 100% शौचालय सुविधा प्राप्त करने का लक्ष्य अभी भी दूर है। हालांकि, पिछले साल के मुकाबले इस साल 319 नई लड़कियों के शौचालय और 248 लड़कों के शौचालय बनाए गए हैं, लेकिन लक्ष्य 100% तक पहुंचने में अभी समय लगेगा। इस आंकड़े में पिछले साल के दौरान 154 प्राथमिक स्कूलों के बंद होने के बाद यह स्थिति और भी चुनौतीपूर्ण हो गई है।
देहरादून में शौचालयों का बेहतर स्थिति
देहरादून एकमात्र ऐसा जिला है, जहां 869 प्राथमिक स्कूलों में शौचालय बनाए गए हैं। शेष जिलों में शौचालयों की स्थिति बहुत ही खराब है। राज्य के विभिन्न जिलों में शौचालय की स्थिति का आंकड़ा साफ बताता है कि लड़कों और लड़कियों के लिए शौचालयों का निर्माण बहुत धीमी गति से हुआ है।
मुख्य जिलों में शौचालयों की कमी
- अल्मोड़ा – लड़कों के लिए 101 और लड़कियों के लिए 141 स्कूलों में शौचालय नहीं हैं।
- बागेश्वर – लड़कों के लिए 53 और लड़कियों के लिए 44 स्कूलों में शौचालय नहीं हैं।
- चमोली – लड़कों के लिए 31 और लड़कियों के लिए 75 स्कूलों में शौचालय नहीं हैं।
- चंपावत – लड़कों के लिए 22 और लड़कियों के लिए 35 स्कूलों में शौचालय नहीं हैं।
- हरिद्वार – लड़कों के लिए 180 और लड़कियों के लिए 12 स्कूलों में शौचालय नहीं हैं।
- नैनीताल – लड़कों के लिए 92 और लड़कियों के लिए 66 स्कूलों में शौचालय नहीं हैं।
- पौड़ी – लड़कों के लिए 102 और लड़कियों के लिए 135 स्कूलों में शौचालय नहीं हैं।
- पिथौरागढ़ – लड़कों के लिए 63 और लड़कियों के लिए 72 स्कूलों में शौचालय नहीं हैं।
- रुद्रप्रयाग – लड़कों के लिए 522 और लड़कियों के लिए 51 स्कूलों में शौचालय नहीं हैं।
- टिहरी – लड़कों के लिए 1252 और लड़कियों के लिए 138 स्कूलों में शौचालय नहीं हैं।
- ऊधमसिंह नगर – लड़कों के लिए 771 और लड़कियों के लिए 51 स्कूलों में शौचालय नहीं हैं।
- उत्तरकाशी – लड़कों के लिए 676 और लड़कियों के लिए 124 स्कूलों में शौचालय नहीं हैं।
शौचालय की सुविधा का महत्व
शौचालय की सुविधा सिर्फ एक भौतिक सुविधा नहीं है, बल्कि यह बच्चों की सेहत, स्वच्छता और आत्मसम्मान से जुड़ा हुआ मसला है। लड़कियों के लिए विशेष रूप से यह बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि स्वच्छता की कमी के कारण वे कई बार स्कूल आना छोड़ देती हैं या फिर उन्हें खुले में शौच जाने के लिए मजबूर किया जाता है। यह उनके स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो सकता है और उनके शिक्षा पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।
समाधान और भविष्य की दिशा
उत्तराखंड में शौचालय की स्थिति में सुधार के लिए शिक्षा विभाग को गंभीरता से कदम उठाने होंगे। स्कूलों में शौचालयों की मरम्मत और निर्माण के लिए तय की गई धनराशि का सही उपयोग किया जाना चाहिए। इसके अलावा, पानी की व्यवस्था और शौचालयों के ताले खोलने के मुद्दे पर भी शिक्षा विभाग को ध्यान केंद्रित करना होगा।
केंद्र सरकार ने समग्र शिक्षा योजना के तहत बजट आवंटित किया है, लेकिन स्कूल स्तर पर लापरवाही को दूर करने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों और शिक्षकों को सख्त दिशा-निर्देश दिए जाने चाहिए।
उत्तराखंड में शौचालयों की स्थिति में सुधार के लिए अभी बहुत काम किया जाना बाकी है। हालांकि कुछ प्रगति हुई है, लेकिन 100% शौचालय सुविधा का लक्ष्य हासिल करने में अभी समय लगेगा। बच्चों के स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए यह एक जरूरी कदम है, और इसे प्राथमिकता के आधार पर हल किया जाना चाहिए।