Delhi High Court ने दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) को जुलाई 2000 में एक DDA अपार्टमेंट की दूसरी मंजिल की बालकनी गिरने से एक व्यक्ति की मौत के लिए जिम्मेदार ठहराया है। न्यायमूर्ति धर्मेश शर्मा की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि DDA की लापरवाही सीधे तौर पर इस घटना का कारण बनी थी।
क्या था मामला?
घटना दिल्ली के झिलमिल कॉलोनी में स्थित एक मल्टी-स्टोरी प्रोजेक्ट की दूसरी मंजिल की बालकनी की है। मृतक व्यक्ति और उसका परिवार DDA द्वारा बनाए गए इस अपार्टमेंट में रह रहे थे। परिवार ने आरोप लगाया था कि इस अपार्टमेंट का निर्माण घटिया सामग्री से किया गया था, जिसके कारण छह साल के भीतर ही बालकनी का प्लास्टर उखड़ने लगा था, जबकि यह सामग्री 40 से 50 साल तक टिकनी चाहिए थी।
निर्माण में दोष और DDA की जिम्मेदारी
कोर्ट ने इस आरोप को स्वीकार करते हुए कहा कि यह साफ तौर पर निर्माण में दोष था, जिसके कारण व्यक्ति बालकनी से गिरकर मारा गया। अदालत ने DDA को निर्देश दिया कि वह इस निर्माण दोष को ठीक करे, क्योंकि यह DDA की जिम्मेदारी थी कि वह इंफ्रास्ट्रक्चर की मजबूती और स्थायित्व को सुनिश्चित करता, खासकर जब यह संपत्ति आवंटित की जा चुकी थी। अदालत ने कहा कि यह DDA की जिम्मेदारी है कि वह आवंटन के बाद भी यह सुनिश्चित करे कि संरचनाओं का रख-रखाव और सुधार सही तरीके से हो।
DDA का बचाव
इस मामले में DDA ने अपनी दलील दी थी कि दोषपूर्ण निर्माण या खराब रख-रखाव का जिम्मेदार निवासी था। DDA ने कहा कि यह भवन 1986-87 में बने थे, और इतने वर्षों बाद इसका रख-रखाव उसकी जिम्मेदारी नहीं हो सकता। इसके अलावा, DDA ने यह भी कहा कि 1993 में इलाके को डीनोटिफाइड कर दिया गया था और सभी निर्माण कार्यों और रख-रखाव की जिम्मेदारी नगर निगम दिल्ली (MCD) को सौंप दी गई थी।
हालांकि, अदालत ने DDA की इस दलील को खारिज कर दिया और कहा कि MCD को दोषी नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि भवन का निर्माण DDA ने किया था। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि जब तक DDA ने भवनों का निर्माण किया, तब तक इनकी जिम्मेदारी उस पर ही बनी रहती है।
मुआवजे का आदेश
कोर्ट ने DDA को मृतक के परिवार को 11 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया। अदालत ने यह भी कहा कि यह राशि DDA के द्वारा की गई लापरवाही और निर्माण में दोष के कारण व्यक्ति की हुई दुखद मृत्यु का कुछ मुआवजा होगी।
निर्माण दोष और रख-रखाव की अहमियत
यह मामला निर्माण में गुणवत्ता की कमी और उचित रख-रखाव की अहमियत को उजागर करता है। अदालत का यह फैसला यह सिद्ध करता है कि सरकार और सरकारी एजेंसियों के लिए यह जिम्मेदारी होती है कि वे जिस संपत्ति का निर्माण करें, उसका सही तरीके से रख-रखाव भी करें। खासकर जब उस संपत्ति में लोग रहते हों और उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी उस निर्माण करने वाली संस्था की होती है।
प्रभाव और प्रतिक्रिया
दिल्ली हाई कोर्ट के इस फैसले के बाद अब DDA की जिम्मेदारी यह हो गई है कि वह अपनी परियोजनाओं में सुरक्षा और गुणवत्ता का ध्यान रखे। इस फैसले का व्यापक प्रभाव भी हो सकता है, खासकर उन मामलों में जहां सरकारी एजेंसियों द्वारा किए गए निर्माण में दोष होता है। यह फैसला उन नागरिकों के लिए भी एक मिसाल बन सकता है, जिनके लिए यह सुरक्षा और गुणवत्ता से जुड़े मुद्दों पर कानूनी उपायों का सहारा लेने का एक रास्ता खोलता है।
क्या है भविष्य में जिम्मेदारी?
इस फैसले ने भविष्य में ऐसी अन्य परियोजनाओं के निर्माण में और अधिक कड़ी निगरानी की आवश्यकता को उजागर किया है। जहां भी सरकारी एजेंसियां निर्माण कार्यों को अंजाम देती हैं, वहां यह सुनिश्चित करना आवश्यक होगा कि वह निर्माण मानक के अनुरूप हो और भविष्य में ऐसी घटनाएं न घटित हों।
दिल्ली हाई कोर्ट का यह फैसला न केवल DDA के खिलाफ एक अहम टिप्पणी है, बल्कि यह पूरे निर्माण उद्योग के लिए एक चेतावनी भी है। यह फैसला यह सुनिश्चित करता है कि नागरिकों की सुरक्षा सबसे पहले आनी चाहिए, और सरकारी संस्थाएं जिम्मेदारी से अपने कार्यों को अंजाम दें। इस निर्णय ने यह भी सिद्ध किया है कि अगर किसी सरकारी एजेंसी की लापरवाही से किसी की जान जाती है, तो उसे मुआवजा देने की जिम्मेदारी भी उस एजेंसी की होती है।
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