Uttarakhand News: गंगोत्री में गंगा में गिर रहा है सीवर , एनजीटी ने उत्तराखंड के मुख्य सचिव को जांच के निर्देश दिए
Uttarakhand News: गंगोत्री, गंगा का उद्गम स्थल, में गंगा नदी में सीवर का गिरना जारी है, जिससे पर्यावरण और जलप्रदूषण की गंभीर समस्या उत्पन्न हो रही है। राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) ने इस मामले को लेकर चिंता जताते हुए उत्तराखंड के मुख्य सचिव को जांच के आदेश दिए हैं। एनजीटी का कहना है कि गंगा और उसकी सहायक नदियों में सीवर और अन्य गंदगी डालने की प्रवृत्ति को नियंत्रित नहीं किया जा रहा है। एनजीटी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव की अध्यक्षता में हुई सुनवाई में यह गंभीर मामला सामने आया।
गंगोत्री में सीवर से बढ़ रहा प्रदूषण
गंगोत्री में सीवर से संबंधित एक रिपोर्ट में सामने आया कि वहां के सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (STP) में फेकल कॉलिफॉर्म (fecal coliform) की मात्रा मानक से अधिक पाई गई है। यह मात्रा एक मिलियन लीटर प्रति दिन (MLD) क्षमता वाले STP में 540/100 मिली MPN (Most Probable Number) के रूप में पाई गई। जबकि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के अनुसार, पानी की गुणवत्ता (आउटडोर स्नान) के मानक में अधिकतम मात्रा 500/100 मिली होनी चाहिए। फेकल कॉलिफॉर्म का स्तर यह दर्शाता है कि पानी में मनुष्यों और जानवरों के मल-मूत्र से उत्पन्न सूक्ष्मजीवों का प्रदूषण है, जो स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकता है।
सीवर का गंगा और सहायक नदियों में गिरना
एनजीटी की सुनवाई में यह भी सामने आया कि राज्य में 63 नालों का टेप नहीं किया गया है, जिनकी वजह से गंदगी और सीवर नदियों में गिर रहे हैं। काशीपुर, बाजपुर और किच्छा जैसे उधम सिंह नगर जिले के शहरों के नालों में सीवर की व्यवस्था नहीं की गई है, जिससे प्रदूषण का स्तर और बढ़ रहा है। एनजीटी ने राज्य सरकार से उम्मीद जताई है कि वह एक समय सीमा में कार्रवाई करेगी और अगली रिपोर्ट में इस पर स्पष्टता लाई जाएगी।
राज्य के सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स की कार्यप्रणाली पर सवाल
एनजीटी ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की रिपोर्ट का उल्लेख करते हुए कहा कि राज्य में कुल 53 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स (STPs) में से केवल 50 ही कार्यशील हैं, और इनमें से 48 की क्षमता कम है। इन STPs की क्षमता बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड (BOD) को पूरी तरह से साफ करने के लिए पर्याप्त नहीं है। न्यायमूर्ति श्रीवास्तव ने इस स्थिति पर चिंता जताते हुए कहा कि इन STPs की कार्यप्रणाली और उनकी क्षमता का अंतर राज्य सरकार की रिपोर्ट में अविश्वसनीय प्रतीत हो रहा है, जिससे इस मामले की पूरी जांच की आवश्यकता महसूस होती है।
STPs में क्षमता का असंतुलन
एनजीटी ने देहरादून, उत्तरकाशी, पौड़ी, चमोली, हरिद्वार और टिहरी जैसे शहरों के STPs की स्थिति का हवाला देते हुए कहा कि इन STPs में उपचार क्षमता में असंतुलन है। कुछ स्थानों पर कम सीवर को उपचारित किया जा रहा है, जबकि कुछ स्थानों पर अधिक सीवर पहुंच रहा है। रिपोर्ट में यह उल्लेख नहीं किया गया है कि सीवर का बैकफ्लो (backflow) या अन्य समस्या कहां हो रही है, जो प्रदूषण को और बढ़ा सकता है।
एनजीटी का आदेश और आगे की कार्रवाई
एनजीटी ने इस मामले में उत्तराखंड के मुख्य सचिव को आदेश दिया कि वह इस मामले की पूरी जांच करें और समयबद्ध तरीके से कार्रवाई की योजना तैयार करें। एनजीटी ने राज्य सरकार से यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया कि गंगा और अन्य नदियों में गिरने वाले सीवर और गंदगी को नियंत्रित किया जाए। साथ ही, STPs की क्षमता में सुधार करने और उनकी कार्यप्रणाली को बेहतर बनाने के लिए तात्कालिक कदम उठाए जाएं।
एनजीटी ने कहा कि राज्य सरकार को जल्द से जल्द रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी, जिसमें यह स्पष्ट हो कि किस तरह से इन समस्याओं का समाधान किया जा रहा है। इस मामले की अगली सुनवाई 13 फरवरी को होगी, जब राज्य सरकार अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी और यह देखा जाएगा कि मामले में क्या प्रगति हुई है।
गंगा की सफाई और पर्यावरण की सुरक्षा
गंगा की सफाई और उसे प्रदूषण से बचाने के लिए सरकार और विभिन्न संस्थाओं द्वारा कई प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन गंगोत्री और अन्य इलाकों में सीवर से प्रदूषण की समस्या लगातार बनी हुई है। गंगा एक जीवित नदी है, जिसका जल भारतीय संस्कृति और जीवनशैली में विशेष स्थान रखता है। इसके जल के प्रदूषित होने से न केवल पर्यावरणीय समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं, बल्कि लोगों के स्वास्थ्य पर भी गंभीर प्रभाव पड़ रहा है।
गंगा नदी के प्रदूषण को रोकने के लिए व्यापक और कड़ी कार्रवाई की आवश्यकता है। यह केवल एक पर्यावरणीय मुद्दा नहीं, बल्कि यह जल स्रोतों के संरक्षण, सार्वजनिक स्वास्थ्य और धार्मिक आस्थाओं से भी जुड़ा हुआ मामला है। एनजीटी के आदेश से राज्य सरकार को इस दिशा में और तेज़ी से कदम उठाने के लिए प्रेरित किया जा सकता है।
एनजीटी का यह आदेश उत्तराखंड सरकार के लिए एक चेतावनी है कि वह गंगा और उसकी सहायक नदियों में गिरने वाले सीवर और अन्य प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए तुरंत और प्रभावी कदम उठाए। गंगोत्री में बढ़ते प्रदूषण को लेकर एनजीटी की चिंता को गंभीरता से लिया जाना चाहिए, और राज्य सरकार को इस दिशा में आवश्यक सुधार करने चाहिए ताकि गंगा को पुनः साफ और शुद्ध किया जा सके।