Justice DY Chandrachud: ‘बुलडोजर न्याय स्वीकार्य नहीं है’, Justice DY Chandrachud का अंतिम आदेश
Justice DY Chandrachud: भारत के मुख्य न्यायाधीश, न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड ने हाल ही में अपने कार्यकाल के अंतिम दिन एक महत्वपूर्ण निर्णय में ‘बुलडोजर न्याय’ की आलोचना की और इसे कानून के तहत अस्वीकार्य बताया। उन्होंने कहा कि बुलडोजर न्याय न केवल कानून के शासन के खिलाफ है, बल्कि यह मौलिक अधिकारों का भी उल्लंघन करता है। इस निर्णय में उन्होंने स्पष्ट किया कि यदि ऐसा न्यायिक व्यवहार जारी रहा तो संविधान द्वारा दिए गए संपत्ति के अधिकार को ध्वस्त किया जा सकता है।
‘बुलडोजर न्याय’ पर आपत्ति
न्यायमूर्ति चंद्रचूड की अगुवाई में सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने कहा कि ‘बुलडोजर न्याय’ कोई ऐसा तरीका नहीं है जिसे किसी सभ्य न्यायव्यवस्था में स्वीकार किया जाए। कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि राज्य के किसी भी अंग या अधिकारी द्वारा अत्यधिक और अवैध व्यवहार को अनुमति दी जाती है, तो यह नागरिकों की संपत्तियों को एकतरफा तरीके से नष्ट करने का कारण बन सकता है। न्यायमूर्ति चंद्रचूड ने यह भी चेतावनी दी कि यदि इस प्रकार के व्यवहार को रोका नहीं गया तो यह नागरिकों के खिलाफ अन्याय और बदले की भावना को बढ़ावा दे सकता है।
संपत्ति नष्ट करने से पहले उठाए जाने वाले कदम
सुप्रीम कोर्ट ने इस संदर्भ में छह आवश्यक कदमों की अनुशंसा की है जो किसी भी संपत्ति को नष्ट करने से पहले उठाए जाने चाहिए। इनमें शामिल हैं:
- भूमि अभिलेखों और नक्शों का सत्यापन: सबसे पहले, संबंधित अधिकारियों को भूमि अभिलेखों और नक्शों की जाँच करनी चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि संपत्ति पर वास्तविक अतिक्रमण हुआ है या नहीं।
- सही सर्वेक्षण: अतिक्रमण का सही-सही पता लगाने के लिए एक उचित सर्वेक्षण करना चाहिए।
- लिखित नोटिस जारी करना: जो लोग अतिक्रमण के आरोपित हैं, उन्हें लिखित नोटिस जारी करना चाहिए।
- आपत्तियों पर विचार और आदेश जारी करना: यदि कोई आपत्ति प्रस्तुत की जाती है, तो उसे ध्यान में रखते हुए स्पष्ट आदेश जारी करना चाहिए।
- स्वयं से हटाने के लिए पर्याप्त समय देना: आरोपितों को संपत्ति को स्वेच्छा से हटाने के लिए पर्याप्त समय दिया जाना चाहिए।
- आवश्यकता पड़ने पर अतिरिक्त भूमि का कानूनी अधिग्रहण: यदि आवश्यकता हो तो, अतिरिक्त भूमि का कानूनी तरीके से अधिग्रहण किया जा सकता है।
मनोज तिवारी अखिलेश के घर का मामला
यह निर्णय उत्तर प्रदेश के महाराजगंज जिले में सितंबर 2019 में पत्रकार मनोज तिवारी अखिलेश के घर को तोड़े जाने के मामले में आया है। कोर्ट ने राज्य के इस कार्य को ‘क्रूर’ करार दिया और कहा कि राज्य ने इस मामले में जो प्रक्रिया अपनाई, वह पूरी तरह से गलत और अमानवीय थी।
सरकारी अधिकारियों ने यह दावा किया था कि राष्ट्रीय राजमार्ग के विस्तार के लिए यह तोड़फोड़ जरूरी थी, लेकिन जब इस मामले की जांच की गई, तो यह पाया गया कि इस कार्रवाई में राज्य शक्ति का दुरुपयोग किया गया था। कोर्ट ने इसे एक उदाहरण के रूप में पेश किया और कहा कि ऐसी कार्रवाई नागरिकों के खिलाफ एकतरफा और अन्यायपूर्ण थी।
उत्तर प्रदेश सरकार को ₹25 लाख का मुआवजा
कोर्ट ने इस मामले में उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया कि वह याचिकाकर्ता को ₹25 लाख का अंतरिम मुआवजा प्रदान करे। इसके अलावा, उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को आदेश दिया कि वे इस मामले में दोषी अधिकारियों और ठेकेदारों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू करें और उनके खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करें।
आदेश का महत्व
यह आदेश भारतीय न्यायपालिका के दृष्टिकोण को स्पष्ट करता है कि राज्य या सरकार को किसी भी कारण से नागरिकों की संपत्तियों को नष्ट करने का अधिकार नहीं हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने यह सिद्धांत स्थापित किया कि सरकार या प्रशासन को किसी भी प्रकार की कार्रवाई करते समय नागरिकों के मौलिक अधिकारों का सम्मान करना चाहिए और उन्हें बिना किसी स्पष्ट कानूनी प्रक्रिया के नुकसान नहीं पहुँचाना चाहिए।
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड ने अपने अंतिम आदेश में जो दिशा-निर्देश दिए हैं, वे यह सुनिश्चित करने के लिए हैं कि ऐसी घटनाएँ भविष्य में न घटें और नागरिकों को उनके कानूनी अधिकारों से वंचित न किया जाए। उनके इस निर्णय ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भारतीय न्यायपालिका नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने में कड़ी है और किसी भी प्रकार के अत्यधिक या अवैध सरकारी व्यवहार को स्वीकार नहीं किया जा सकता है।
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड का यह निर्णय भारतीय न्याय व्यवस्था की स्थिरता और निष्पक्षता को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण कदम है। उन्होंने जो दिशा-निर्देश दिए हैं, वे नागरिकों की संपत्ति और अधिकारों की रक्षा करने के लिए महत्वपूर्ण हैं। अब यह राज्य और स्थानीय प्रशासन पर निर्भर करता है कि वे इन निर्देशों को कैसे लागू करते हैं और सुनिश्चित करते हैं कि भविष्य में ऐसी घटनाएँ न घटें। यह निर्णय न केवल कानूनी दृष्टिकोण से, बल्कि सामाजिक न्याय के दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे सरकारों को यह संदेश मिलता है कि वे नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन नहीं कर सकतीं।