Uttarakhand राज्य स्थापना, योजनाओं के धरातल पर उतरने का इंतजार, सड़क और रेलवे लाइन की मांग बरकरार
Uttarakhand: उत्तराखंड राज्य की स्थापना के बाद सड़क और रेलवे कनेक्टिविटी के क्षेत्र में कार्य तेजी से शुरू हुआ है। लेकिन कई महत्वपूर्ण योजनाएं, जिनकी दशकों से मांग रही है, अब तक धरातल पर नहीं उतर पाई हैं। तानकपुर से हरिद्वार कांडी मार्ग से लेकर बागेश्वर-तानकपुर रेलवे लाइन जैसी परियोजनाओं तक, कई गांव आज भी सड़क संपर्क का इंतजार कर रहे हैं।
ब्रिटिश काल से चल रहे प्रयास
बागेश्वर-तानकपुर रेलवे लाइन का प्रयास ब्रिटिश काल से ही जारी है। इस रेलवे लाइन (169.99 किलोमीटर) के लिए सर्वेक्षण का कार्य इस वर्ष अप्रैल में शुरू हुआ। इसके अतिरिक्त काशीपुर-ढामपुर रेलवे लाइन की योजना भी है, जिसका सर्वेक्षण कार्य हाल ही में पूरा हुआ है। इसके साथ ही सितारगंज होते हुए लालकुआं से खटीमा तक 63 किलोमीटर लंबी रेलवे लाइन का भी प्रस्ताव है। रामनगर से चौखुटिया रेलवे लाइन को लेकर भी चर्चाएं हो चुकी हैं। इन सभी योजनाओं का सपना आज भी कागजों में सिमटा हुआ है, और उन्हें धरातल पर उतरने का इंतजार है।
राज्य में सैकड़ों किलोमीटर की कच्ची सड़कें
ग्रामीण विकास एवं प्रवासन रोकथाम आयोग की अंतरिम रिपोर्ट के अनुसार, राज्य की स्थापना के 22 साल बाद भी उत्तराखंड के छह हजार से अधिक गांवों को अब तक सड़कों से नहीं जोड़ा जा सका है। रिपोर्ट के अनुसार, राज्य के 5,828 गांव अब भी मुख्य सड़क से शून्य से पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। हालत यह है कि 84 गांवों के लोगों को आज भी 10-10 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है।
तानकपुर-चोरगलिया-रामनगर-कालागढ़-कोटद्वार मार्ग की मांग
इसके अलावा, तानकपुर-चोरगलिया-रामनगर-कालागढ़-कोटद्वार के बीच एक मार्ग की मांग लंबे समय से की जा रही है, लेकिन यह मार्ग अब तक अस्तित्व में नहीं आ पाया है। लोक निर्माण विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार, कुछ स्थानों पर यातायात के लिए सड़कें तो बनाई गई हैं, लेकिन उनमें से 6,751 किलोमीटर सड़कें आज भी कच्ची हैं। वहीं 424 किलोमीटर सड़कों पर जल-बंधी मैकडम का निर्माण किया गया है।
सरकार और विभागीय चुनौतियाँ
सरकार और संबंधित विभागों के लिए राज्य की दुर्गम भौगोलिक स्थिति एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। पहाड़ों में सड़कों का निर्माण कठिन और खर्चीला है। यही कारण है कि अब तक कई योजनाएं ठोस रूप नहीं ले पाई हैं। प्रशासन के पास सीमित बजट और संसाधन हैं, और प्रायः यही वजह होती है कि यहां की योजनाएं धरातल पर उतरने में समय लेती हैं।
परिवहन और आर्थिक विकास पर प्रभाव
परिवहन के अभाव में ग्रामीण इलाकों का आर्थिक विकास रुक सा गया है। गांवों में कृषि उत्पादों को बाजार तक ले जाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। स्थानीय निवासी अक्सर शहरी क्षेत्रों में रोजगार की तलाश में प्रवास करने पर मजबूर होते हैं। इस प्रकार राज्य में आधारभूत संरचना के अभाव का प्रभाव ग्रामीण इलाकों के आर्थिक और सामाजिक विकास पर साफ दिखाई देता है।
पर्यावरण और सुरक्षा चिंताएँ
उत्तराखंड की पहाड़ी क्षेत्र में सड़कों और रेलवे लाइन का निर्माण करते समय पर्यावरणीय प्रभाव को ध्यान में रखना भी अनिवार्य है। पहाड़ी इलाकों में सड़क निर्माण से भू-क्षरण और भूस्खलन की समस्या बढ़ सकती है। इसके अलावा, कई सड़कें प्राकृतिक आपदाओं के दौरान कट जाती हैं, जिससे दूरदराज के गांवों का संपर्क टूट जाता है।
सरकार के प्रयास और योजनाएँ
उत्तराखंड सरकार ने हाल ही में कुछ योजनाओं को पुनर्जीवित करने की घोषणा की है, जिसमें सड़क निर्माण के कार्यों में तेजी लाने की योजना भी शामिल है। राज्य सरकार का दावा है कि आने वाले वर्षों में कच्ची सड़कों को पक्का किया जाएगा और गांवों को मुख्य मार्गों से जोड़ा जाएगा। इसके साथ ही, केंद्र सरकार की सहयोग से रेलवे परियोजनाओं पर भी कार्य शुरू किया जाएगा।
जनता की उम्मीदें और आगे का रास्ता
राज्य की जनता को उम्मीद है कि सरकार उनकी मांगों को जल्द से जल्द पूरा करेगी। सड़क और रेलवे कनेक्टिविटी के विकास से राज्य में पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा और आर्थिक विकास की राह खुलेगी। सरकार की योजनाओं का लाभ तब ही मिलेगा जब ये योजनाएं कागजों से निकलकर वास्तविकता में बदलेंगी।
उत्तराखंड में सड़क और रेलवे कनेक्टिविटी का विकास यहां के निवासियों के लिए एक बड़ी उम्मीद है, और इन परियोजनाओं का सफल कार्यान्वयन राज्य को विकास की नई ऊंचाइयों पर ले जा सकता है।