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Kedarnath By-Poll: बीजेपी ने पूर्व विधायक आशा नौटियाल में फिर से जताया विश्वास, जानिए उनका राजनीतिक सफर

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Kedarnath By-Poll: उपचुनाव की हलचल के बीच, बीजेपी ने केदारनाथ विधानसभा उपचुनाव के लिए पूर्व विधायक और महिला मोर्चा की प्रदेश अध्यक्ष आशा नौटियाल को अपना उम्मीदवार घोषित किया है। 2017 के बाद से, वह एक बार फिर चुनावी मैदान में हैं। आइए जानते हैं उनकी राजनीतिक पृष्ठभूमि और सफर के बारे में।

राजनीतिक सफर की शुरुआत

उत्तराखंड राज्य के गठन के बाद, 2002 में पहली विधानसभा चुनाव के दौरान आशा नौटियाल को केदारनाथ विधानसभा से बीजेपी का उम्मीदवार बनाया गया था। वह इस क्षेत्र की पहली विधायक बनीं। आशा नौटियाल, जो कि उखीमठ विकास खंड के दिल्मी गाँव की निवासी हैं, एक सामान्य परिवार से ताल्लुक रखती हैं। उनके पति रमेश नौटियाल पत्रकारिता से जुड़े हुए हैं।

Kedarnath By-Poll: बीजेपी ने पूर्व विधायक आशा नौटियाल में फिर से जताया विश्वास, जानिए उनका राजनीतिक सफरKedarnath By-Poll: उपचुनाव की हलचल के बीच, बीजेपी ने केदारनाथ विधानसभा उपचुनाव के लिए पूर्व विधायक और महिला मोर्चा की प्रदेश अध्यक्ष आशा नौटियाल को अपना उम्मीदवार घोषित किया है। 2017 के बाद से, वह एक बार फिर चुनावी मैदान में हैं। आइए जानते हैं उनकी राजनीतिक पृष्ठभूमि और सफर के बारे में। राजनीतिक सफर की शुरुआत उत्तराखंड राज्य के गठन के बाद, 2002 में पहली विधानसभा चुनाव के दौरान आशा नौटियाल को केदारनाथ विधानसभा से बीजेपी का उम्मीदवार बनाया गया था। वह इस क्षेत्र की पहली विधायक बनीं। आशा नौटियाल, जो कि उखीमठ विकास खंड के दिल्मी गाँव की निवासी हैं, एक सामान्य परिवार से ताल्लुक रखती हैं। उनके पति रमेश नौटियाल पत्रकारिता से जुड़े हुए हैं। पंचायत से विधायक बनने का सफर 1996 में, आशा नौटियाल पहली बार उखीमठ वार्ड से जिला पंचायत सदस्य के रूप में निर्विरोध चुनी गईं। इसके बाद, 1997-98 में बीजेपी ने उन्हें जिला उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी। 1999 में, वह महिला मोर्चा की जिला अध्यक्ष बनीं। उनके सुसंस्कृत व्यवहार और निरंतर जनसंपर्क के कारण, बीजेपी ने उन्हें 2002 के विधानसभा चुनावों में केदारनाथ सीट का उम्मीदवार बनाया, जहाँ उन्होंने कांग्रेस की उम्मीदवार और पूर्व विधायक शैलरानी रावत को हराया। लगातार चुनावों में सफलता और असफलता 2007 में भी, आशा नौटियाल को बीजेपी ने उम्मीदवार बनाया, और उन्होंने फिर से कांग्रेस के उम्मीदवार कुँवर सिंह नेगी को हराया। लेकिन 2012 में, जब वह तीसरी बार बीजेपी की उम्मीदवार बनीं, तो उन्हें शैलरानी रावत के हाथों हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद, 2016 में शैलरानी रावत बीजेपी में शामिल हो गईं, और 2017 में पार्टी ने उन्हें उम्मीदवार बनाया। इस पर आशा नौटियाल ने पार्टी से बगावत की और स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा, जिसमें वह तीसरे स्थान पर रहीं। इस चुनाव में कांग्रेस के मनोज रावत विधायक बने, जबकि स्वतंत्र उम्मीदवार कुलदीप रावत ने दूसरा स्थान प्राप्त किया। पार्टी में वापसी और सक्रियता कुछ समय बाद, आशा नौटियाल ने पार्टी में वापसी की और क्षेत्र में सक्रियता बढ़ाई। 2022 में, बीजेपी ने शैलरानी रावत को फिर से उम्मीदवार बनाया, जिन्होंने चुनाव जीत लिया। इसी बीच, आशा नौटियाल को महिला मोर्चा की प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया, जिससे उन्हें उच्च कमान से सीधे संपर्क का अवसर मिला। क्षेत्र में लोकप्रियता और कार्यशैली इस बार आशा नौटियाल को फिर से चुनावी मैदान में उतारने के पीछे उनकी क्षेत्र में मजबूत पकड़ है। उन्हें गांव-गांव जाकर सदस्यता अभियान में सक्रिय देखा गया। उनका जनसंपर्क और लोगों के साथ संवाद उनकी लोकप्रियता को बढ़ाने में मदद कर रहा है। आशा नौटियाल को स्थानीय जनता के बीच एक अच्छी छवि के लिए जाना जाता है। केदारनाथ उपचुनाव की चुनौतियाँ केदारनाथ उपचुनाव में, आशा नौटियाल को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। सबसे पहले, उन्हें यह सुनिश्चित करना होगा कि उनके पिछले कार्यकाल की उपलब्धियाँ मतदाताओं के सामने सही ढंग से प्रस्तुत हों। इसके अलावा, उन्हें अपने विरोधियों के चुनावी प्रचार को नकारने के लिए प्रभावी रणनीतियाँ बनानी होंगी। आशा नौटियाल का राजनीतिक सफर प्रेरणादायक है और यह दर्शाता है कि कैसे एक महिला नेता अपनी मेहनत और दृढ़ता से अपने क्षेत्र में पहचान बना सकती है। केदारनाथ उपचुनाव में उनके उम्मीदवार बनने से यह स्पष्ट होता है कि बीजेपी ने उनकी क्षमता पर भरोसा जताया है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या आशा नौटियाल इस बार मतदाताओं का विश्वास जीतने में सफल होंगी और केदारनाथ विधानसभा में फिर से अपनी उपस्थिति दर्ज कराएंगी।

पंचायत से विधायक बनने का सफर

1996 में, आशा नौटियाल पहली बार उखीमठ वार्ड से जिला पंचायत सदस्य के रूप में निर्विरोध चुनी गईं। इसके बाद, 1997-98 में बीजेपी ने उन्हें जिला उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी। 1999 में, वह महिला मोर्चा की जिला अध्यक्ष बनीं। उनके सुसंस्कृत व्यवहार और निरंतर जनसंपर्क के कारण, बीजेपी ने उन्हें 2002 के विधानसभा चुनावों में केदारनाथ सीट का उम्मीदवार बनाया, जहाँ उन्होंने कांग्रेस की उम्मीदवार और पूर्व विधायक शैलरानी रावत को हराया।

लगातार चुनावों में सफलता और असफलता

2007 में भी, आशा नौटियाल को बीजेपी ने उम्मीदवार बनाया, और उन्होंने फिर से कांग्रेस के उम्मीदवार कुँवर सिंह नेगी को हराया। लेकिन 2012 में, जब वह तीसरी बार बीजेपी की उम्मीदवार बनीं, तो उन्हें शैलरानी रावत के हाथों हार का सामना करना पड़ा।

इसके बाद, 2016 में शैलरानी रावत बीजेपी में शामिल हो गईं, और 2017 में पार्टी ने उन्हें उम्मीदवार बनाया। इस पर आशा नौटियाल ने पार्टी से बगावत की और स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा, जिसमें वह तीसरे स्थान पर रहीं। इस चुनाव में कांग्रेस के मनोज रावत विधायक बने, जबकि स्वतंत्र उम्मीदवार कुलदीप रावत ने दूसरा स्थान प्राप्त किया।

पार्टी में वापसी और सक्रियता

कुछ समय बाद, आशा नौटियाल ने पार्टी में वापसी की और क्षेत्र में सक्रियता बढ़ाई। 2022 में, बीजेपी ने शैलरानी रावत को फिर से उम्मीदवार बनाया, जिन्होंने चुनाव जीत लिया। इसी बीच, आशा नौटियाल को महिला मोर्चा की प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया, जिससे उन्हें उच्च कमान से सीधे संपर्क का अवसर मिला।

क्षेत्र में लोकप्रियता और कार्यशैली

इस बार आशा नौटियाल को फिर से चुनावी मैदान में उतारने के पीछे उनकी क्षेत्र में मजबूत पकड़ है। उन्हें गांव-गांव जाकर सदस्यता अभियान में सक्रिय देखा गया। उनका जनसंपर्क और लोगों के साथ संवाद उनकी लोकप्रियता को बढ़ाने में मदद कर रहा है। आशा नौटियाल को स्थानीय जनता के बीच एक अच्छी छवि के लिए जाना जाता है।

केदारनाथ उपचुनाव की चुनौतियाँ

केदारनाथ उपचुनाव में, आशा नौटियाल को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। सबसे पहले, उन्हें यह सुनिश्चित करना होगा कि उनके पिछले कार्यकाल की उपलब्धियाँ मतदाताओं के सामने सही ढंग से प्रस्तुत हों। इसके अलावा, उन्हें अपने विरोधियों के चुनावी प्रचार को नकारने के लिए प्रभावी रणनीतियाँ बनानी होंगी।

आशा नौटियाल का राजनीतिक सफर प्रेरणादायक है और यह दर्शाता है कि कैसे एक महिला नेता अपनी मेहनत और दृढ़ता से अपने क्षेत्र में पहचान बना सकती है। केदारनाथ उपचुनाव में उनके उम्मीदवार बनने से यह स्पष्ट होता है कि बीजेपी ने उनकी क्षमता पर भरोसा जताया है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या आशा नौटियाल इस बार मतदाताओं का विश्वास जीतने में सफल होंगी और केदारनाथ विधानसभा में फिर से अपनी उपस्थिति दर्ज कराएंगी।

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