Supreme Court ने मुस्लिम पक्ष को राहत देने से किया इनकार, बुलडोजर कार्रवाई रहेगी जारी

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Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को गुजरात के गिर सोमनाथ में मुस्लिम धार्मिक स्थलों और अन्य निर्माणों के कथित अवैध ध्वस्तीकरण के खिलाफ दायर अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए स्थिति को यथावत रखने का आदेश देने से इनकार कर दिया। इस मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति बीआर गवाई और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने की। प्रारंभ में, पीठ ने स्थिति को यथावत रखने के आदेश की संभावना पर विचार किया, लेकिन सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि इस स्तर पर ऐसे किसी आदेश की आवश्यकता नहीं है।

सरकार की ओर से बयान

गुजरात सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि जिस भूमि पर निर्माण किया गया है, वह सरकारी भूमि है और याचिकाकर्ता आउलिया-ए-दीन समिति के नाम पर कोई अधिकार नहीं है। मेहता ने कहा, “यह सरकारी भूमि है, इसलिए इसे किसी तीसरे पक्ष के अधिकार के तहत नहीं लाया जा सकता।”

कमिटी का आरोप

अउलिया-ए-दीन समिति ने गुजरात सरकार पर आरोप लगाया है कि वह अवैध निर्माणों को ध्वस्त कर रही है। समिति ने सुप्रीम कोर्ट में एक अवमानना याचिका भी दायर की है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि राज्य सरकार ने बिना अनुमति के और सर्वोच्च न्यायालय के अंतरिम स्थगन के बावजूद आवासीय और धार्मिक संरचनाओं को अवैध रूप से ध्वस्त किया है।

सुप्रीम कोर्ट का अंतरिम आदेश

17 सितंबर को, सुप्रीम कोर्ट ने पूरे देश में अपराधियों के खिलाफ बुलडोजर कार्रवाई पर अंतरिम स्थगन लगाया था। अदालत ने कहा था कि आगे के आदेश तक कोई भी बुलडोजर कार्रवाई नहीं की जाएगी और यदि कार्रवाई की आवश्यकता हो, तो पहले सर्वोच्च न्यायालय से अनुमति लेनी होगी। इसके साथ ही, कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि यह आदेश अवैध निर्माण, अतिक्रमण, सड़कों, रेलवे लाइनों, फुटपाथों और सरकारी भूमि पर अवैध कब्जे के लिए लागू नहीं होगा।

सुनवाई के दौरान का घटनाक्रम

इस मामले में सुनवाई के दौरान, सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने मुस्लिम पक्ष की ओर से पेश होकर कहा कि उनकी संपत्तियाँ वक्फ भूमि पर स्थित हैं और राज्य सरकार को निर्देश दिया जाना चाहिए कि वह कोई तीसरे पक्ष के अधिकार न बनाए। सिब्बल ने अदालत से आग्रह किया कि सरकार को उस भूमि पर कोई भी निर्माण या बदलाव करने से रोका जाए।

गुजरात सरकार का जवाब

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस पर जवाब देते हुए कहा कि याचिकाकर्ता की ओर से प्रस्तुत किए गए दस्तावेज़ों में यह साबित नहीं होता कि वे वक्फ भूमि पर हैं। मेहता ने यह भी कहा कि राज्य सरकार को अवैध निर्माणों को हटाने का अधिकार है, और यह प्रक्रिया कानून के दायरे में है।

अवमानना याचिका का महत्व

अवमानना याचिका में आरोप लगाया गया है कि गुजरात में residential और धार्मिक संरचनाओं का ध्वस्तीकरण सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन है। समिति ने कहा कि राज्य सरकार ने आदेश के बावजूद ध्वस्तीकरण कार्रवाई को जारी रखा है, जिससे उनकी संपत्तियों को नुकसान हो रहा है।

गुजरात की राजनीतिक स्थिति

गुजरात में इस प्रकार की कार्रवाई और उसके पीछे के कारणों ने राजनीतिक माहौल को भी प्रभावित किया है। कुछ राजनीतिक दलों ने राज्य सरकार की आलोचना की है और इसे अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ भेदभाव के रूप में देखा है। कांग्रेस पार्टी ने भी इस मुद्दे पर अपनी चिंता व्यक्त की है और न्यायालय से तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है।

आगे की संभावनाएँ

सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय गुजरात में अवैध निर्माण के खिलाफ चल रही कानूनी लड़ाई को एक नया मोड़ देता है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सरकार अपने आश्वासनों को कैसे लागू करती है और क्या वह सच में अवैध निर्माणों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करती है।

इसके अलावा, यदि गुजरात सरकार अपनी स्थिति को मजबूत करना चाहती है, तो उसे अपनी कार्रवाई के पीछे के कानूनी तर्कों को स्पष्ट करना होगा। इस बीच, मुस्लिम समुदाय और वक्फ बोर्ड के सदस्यों को यह सुनिश्चित करना होगा कि उनकी संपत्तियों के अधिकारों की रक्षा हो।

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय यह दिखाता है कि वह अवैध निर्माणों के खिलाफ सख्त कदम उठाने की पक्षधर है, लेकिन यह भी स्पष्ट है कि यह मुद्दा केवल कानूनी नहीं, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक भी है। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि अगर राज्य सरकारें और उनके अधिकारी संवैधानिक आदेशों का उल्लंघन करेंगे, तो उन्हें न्यायालय के कठोर निर्णय का सामना करना पड़ेगा।

अब यह देखना होगा कि क्या सरकार इस मामले में अपने दावों को सही साबित कर पाती है या फिर आगे चलकर यह मामला और जटिल होता है।

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