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Uttarakhand: सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की उत्तराखंड सरकार की याचिका, उपनल कर्मचारियों की स्थायी नियुक्ति की उम्मीदें जगाईं

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Uttarakhand: उत्तराखंड सरकार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है, जब शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार द्वारा उपनल कर्मियों को लेकर दायर की गई पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया। सरकार ने यह याचिका उत्तराखंड उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दायर की थी, जिसमें हाई कोर्ट ने उपनल कर्मचारियों को नियमित करने के लिए नियम बनाने और तब तक ‘समान कार्य के लिए समान वेतन’ देने का निर्देश दिया था। सुप्रीम कोर्ट द्वारा याचिका खारिज किए जाने के बाद, राज्य के विभिन्न विभागों में कार्यरत लगभग 25 हजार उपनल कर्मचारियों के नियमितीकरण की उम्मीदें और प्रबल हो गई हैं।

पुनर्विचार याचिका का खारिज होना

राज्य सरकार ने हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में विशेष पुनर्विचार याचिका दायर की थी। हाई कोर्ट ने कुंदन सिंह बनाम राज्य सरकार मामले में फैसला सुनाते हुए कहा था कि सरकार को उपनल कर्मचारियों के लिए नियमितीकरण के नियम बनाने चाहिए और तब तक उन्हें समान कार्य के लिए समान वेतन दिया जाए। राज्य सरकार ने इस फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, लेकिन मंगलवार को न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति प्रसन्ना बी वराले की बेंच ने सरकार की याचिका को खारिज कर दिया।

Uttarakhand: सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की उत्तराखंड सरकार की याचिका, उपनल कर्मचारियों की स्थायी नियुक्ति की उम्मीदें जगाईं

इस फैसले के बाद, उपनल कर्मचारियों के नियमितीकरण की दिशा में सरकार पर दबाव बढ़ गया है, क्योंकि हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट दोनों ने राज्य सरकार को निर्देश दिए हैं कि उपनल कर्मियों के लिए जल्द से जल्द नियम बनाए जाएं।

उपनल कर्मचारियों की स्थिति

उपनल (उत्तराखंड एक्स-सर्विसमेन वेलफेयर कॉरपोरेशन लिमिटेड) के तहत राज्य के विभिन्न विभागों में लगभग 25 हजार कर्मचारी कार्यरत हैं। ये कर्मचारी सुरक्षा गार्ड, अटेंडेंट, लैब तकनीशियन, कंप्यूटर ऑपरेटर, क्लर्क और अधिकारी जैसे पदों पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इनमें से कई कर्मचारी पिछले 10 वर्षों से अधिक समय से काम कर रहे हैं।

कई उपनल कर्मियों ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर नियमितीकरण की मांग की थी। 2018 में हाई कोर्ट ने इन याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को आदेश दिया था कि वह इन कर्मियों को नियमित करने के लिए नियम बनाए। तब तक सरकार को निर्देश दिया गया कि वह उपनल कर्मियों को समान कार्य के लिए समान वेतन दे।

राज्य सरकार की चुनौतियां

राज्य सरकार के लिए यह मुद्दा चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि उपनल कर्मचारियों को नियमित करना वित्तीय और प्रशासनिक दृष्टिकोण से एक बड़ा कदम होगा। सरकार ने हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील की थी, जिसे हाई कोर्ट की डबल बेंच ने भी खारिज कर दिया। इसके बाद सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने भी इस याचिका को खारिज कर दिया।

अब सरकार के पास केवल एक ही विकल्प बचा है, वह यह कि वह इस फैसले का कानूनी परीक्षण करे और इस मुद्दे पर आगे की रणनीति तैयार करे।

कर्मचारियों की मांगें और संघर्ष

उपनल कर्मचारी लंबे समय से नियमितीकरण और समान वेतन की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि वे सभी आवश्यक योग्यता रखते हैं और पिछले 10 सालों से अधिक समय से सरकारी विभागों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं, इसलिए उन्हें स्थायी किया जाना चाहिए।

इस मामले में अदालतों का फैसला कर्मचारियों के पक्ष में आया है, जिससे उनके संघर्ष को बल मिला है। सरकार के लिए अब इस मुद्दे को टालना मुश्किल हो जाएगा, क्योंकि अदालत के आदेशों के बाद कर्मचारियों की नियमितीकरण की उम्मीदें और मजबूत हो गई हैं।

सरकार की अगली रणनीति

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राज्य सरकार के पास अब सीमित विकल्प बचे हैं। सरकार ने पहले ही सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर कर दी थी, जिसे खारिज कर दिया गया। अब सरकार को इस मुद्दे पर कानूनी सलाह लेकर यह तय करना होगा कि वह इस मामले में क्या कदम उठाएगी।

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