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Delhi MCD स्टैंडिंग कमेटी चुनाव, AAP का बहिष्कार और लोकतंत्र पर खतरा

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Delhi में MCD स्टैंडिंग कमिटी चुनाव को लेकर चल रही हालिया विवाद ने राजनीतिक गतिविधियों में एक नया मोड़ ला दिया है। आम आदमी पार्टी (AAP) ने इस चुनाव का बहिष्कार करने का निर्णय लिया है, जिसे पार्टी के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने लोकतंत्र के खिलाफ बताया है। यह घटनाक्रम दिल्ली की राजनीति में हलचल मचा रहा है और इसके पीछे कई महत्वपूर्ण मुद्दे छिपे हुए हैं।

चुनाव की पृष्ठभूमि

MCD स्टैंडिंग कमिटी के लिए एक सदस्य का चुनाव होना था, जो कि बीजेपी नेता कमलजीत सेहरावत के पश्चिम दिल्ली लोकसभा से निर्वाचित होने के बाद खाली हुई सीट के लिए था। इस चुनाव से पहले ही इस मुद्दे पर काफी विवाद उत्पन्न हुआ। मनीष सिसोदिया ने चुनाव को लेकर सवाल उठाते हुए कहा कि कैसे एक अधिकारी एक निर्वाचित सभा की बैठक की अध्यक्षता कर सकता है। बीजेपी ने इस पर पलटवार करते हुए आरोप लगाया कि आम आदमी पार्टी चुनाव से भाग रही है।

Delhi MCD स्टैंडिंग कमेटी चुनाव, AAP का बहिष्कार और लोकतंत्र पर खतरा

मतदान प्रक्रिया

हाल ही में, MCD स्टैंडिंग कमिटी चुनाव के लिए मतदान प्रक्रिया संपन्न हो गई। मतदान प्रक्रिया एक घंटे के भीतर ही पूरी कर ली गई। इस दौरान केवल बीजेपी के पार्षद ही सदन में उपस्थित थे, जबकि न तो महापौर शैले ओबेरॉय और न ही आम आदमी पार्टी के कोई पार्षद मौजूद थे। सभी उपस्थित पार्षदों ने मतदान प्रक्रिया में भाग लिया और उनके नाम एक-एक करके पुकारे गए। यह स्थिति यह दर्शाती है कि AAP के बहिष्कार के कारण सदन में बीजेपी को ही एकतरफा वोटिंग करने का अवसर मिला।

विवाद की वजह

इस विवाद का मुख्य कारण LG वी.के. सक्सेना द्वारा देर रात जारी किए गए आदेश से संबंधित है। पहले महापौर शैले ओबेरॉय ने चुनाव को स्थगित करने का निर्णय लिया था और अगले बैठक की तारीख 5 अक्टूबर निर्धारित की थी। लेकिन LG ने इस निर्णय को पलटते हुए कहा कि चुनाव समय पर कराए जाएं और MCD कमिश्नर अश्विनी कुमार को रात 10 बजे तक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का आदेश दिया। इस आदेश ने राजनीतिक माहौल में हड़कंप मचा दिया और पार्टी के नेताओं के बीच आरोप-प्रत्यारोप की स्थिति उत्पन्न कर दी।

मनीष सिसोदिया ने विधानसभा में कहा, “यह सब लोकतंत्र की हत्या के समान है। क्या अब कोई क्लर्क सदन चलाएगा?” उनका यह बयान दर्शाता है कि AAP इस पूरे चुनावी प्रक्रिया को अवैध और असंवैधानिक मानती है।

विधानसभा में हंगामा

दिल्ली विधानसभा में भी इस मुद्दे को लेकर काफी हंगामा हुआ। AAP के विधायक दिलीप पांडेय ने सदन में आरोप लगाया कि MCD में लोकतंत्र का मजाक उड़ाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि महापौर ने पहले सदन की बैठक को स्थगित किया था और फिर LG के आदेश के बाद चुनाव कराने की हड़बड़ाहट दिखाई गई। उनके अनुसार, ऐसा करना न केवल असंवैधानिक है, बल्कि इससे दिल्ली के लोकतंत्र पर गंभीर खतरा भी मंडरा रहा है।

AAP विधायकों ने आरोप लगाया कि स्टैंडिंग कमिटी के सदस्यों ने चुनाव को मजबूरी में कराना चाहा, जिसके चलते सदन की कार्यवाही को 15 मिनट के लिए स्थगित करना पड़ा। यह स्थिति इस बात का प्रमाण है कि राजनीतिक दलों के बीच आपसी संघर्ष ने न केवल सदन की कार्यवाही को बाधित किया, बल्कि लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को भी प्रभावित किया है।

AAP का दृष्टिकोण

आप पार्टी का मानना है कि इस प्रकार के चुनावी संकट से न केवल उनके लिए, बल्कि सम्पूर्ण दिल्ली के लिए लोकतांत्रिक मूल्यों को खतरा है। पार्टी का आरोप है कि बीजेपी सत्ता का दुरुपयोग कर रही है और प्रशासनिक तंत्र के माध्यम से लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर कर रही है। सिसोदिया ने कहा, “हम इस चुनाव का बहिष्कार कर रहे हैं क्योंकि यह पूरी प्रक्रिया अनुचित और असंवैधानिक है। हम ऐसा नहीं होने देंगे। लोकतंत्र की हत्या नहीं होने देंगे।”

बीजेपी का पलटवार

बीजेपी ने AAP के आरोपों का खंडन करते हुए कहा है कि यदि AAP चुनाव से भाग रही है, तो इसका मतलब है कि वे लोकतांत्रिक प्रक्रिया का सम्मान नहीं करते। बीजेपी नेताओं ने AAP पर चुनावी मैदान में उतरने की बजाय आरोप लगाने का आरोप लगाया है। बीजेपी के प्रवक्ता ने कहा, “अगर आप में आत्मविश्वास है, तो चुनाव में हिस्सा क्यों नहीं लेते? यह सिर्फ AAP की राजनीति का एक हिस्सा है कि वे चुनावों से भागने का बहाना ढूंढते हैं।”

लोकतंत्र पर खतरा?

दिल्ली MCD के स्टैंडिंग कमिटी चुनावों को लेकर चल रहा यह विवाद लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर प्रश्न खड़ा करता है। क्या लोकतंत्र का वास्तविक अर्थ केवल चुनावों में भाग लेना है, या इसे सही तरीके से संपन्न करने का भी महत्व है?

जब सरकारें और राजनीतिक दल अपनी स्वार्थ की पूर्ति के लिए लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को ताक पर रख देते हैं, तो इसका असर न केवल राजनीतिक स्थिरता पर पड़ता है, बल्कि आम नागरिकों के अधिकारों और उनकी आवाज को भी कुचलता है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या हमारे राजनीतिक दल लोकतंत्र की गरिमा को बनाए रखने में सक्षम हैं?

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